मोहन सपरा

मोहन सपरा

मोहन सपरा


सेवानिवृत्त पूर्वाध्यक्ष
डी.ए.वी. कॉलेज, नकोदर (पंजाब)
प्रकाशन:

  • कीड़े (कविता-संग्रह) 1968

  • वक़्त की साज़िश के ख़िलाफ़

  • बहुत कुछ अतिरिक्त (लम्बी कविता), 1975

  • आदमी ज़िंदा है (कविता-संग्रह) 1988

  • कितना अंधेरा है (पाँच लंबी कविताएँ) 1989

  • बरगद को कटते हुए देखना (कविता-संग्रह), 1997

  • पंजाब की आधुनिक हिंदी कविता 2002

  • रक्तबीज आदमी है 1988

अनुवाद: गुरु गोविंदसिंह, शहीद सरदार भगत सिंह, 
संपादन: फिर, रिजू, जितने रास्ते में, फिर ज्योति, लायन मिरर, संदीपिका, ब्यास, घरघर, भारतयुग, जनश्री; अश्क के उपन्यासों में मध्यवर्गीय चेतना (आलोचना)