वीर छंद
विभा रश्मिबजी शिवालयों में घंटियाँ,
गुंजित मानो धनु टंकार।
भुजाओं में फड़की मछलियाँ,
सीनों में धधका अंगार।
नौजवान वीरा मत रुकना,
अरिबल दोधारी तलवार।
घमासान छिड़ता घाटी में,
दिखला दो अपनी फुंकार।
विजय गान गाओ जोशीला।
ओज को ऊँचा, दो उछाल।
सतर्क हुए जुझारू गबरू।
ठहर! बिछा बैरी का जाल।
जा फहरा तिरंगा प्यारा,
लगा देश -प्रेम का गुलाल।
घात लगा, दबोच बैरी को,
शिराएँ लहू रहीं उबाल।
टूट पड़ीं, जहाँ आपदाएँ,
दूत सा बन जा मददगार।
ईद, क्रिसमस, होली-दिवाली,
सिखा इंसानियत, बन यार।