उजास की आशा

02-07-2014

उजास की आशा

स्वर्णलता ठन्ना

विषादों के अँधियारे
तनहाइयों की दीवारें
और असंगत से लगने वाले
प्रश्नों की झड़ियाँ
इन सब के बीच
आशा के जुगनू
हौले-हौले से डोलते
भ्रमित मेरे आसपास
इस चाहत के साथ
स्पर्श मेरा
करें... न करें...।



क्या पता मेरे अंतस के
गहन अँधियारे में
धुएँ के सेतुओं से
आबद्ध हृदय छूकर
कहीं उनकी
जगमगाहट न खो जाए
कहीं वह भी
अपना अस्तित्व न खो दे
इसलिए
मँडराकर मेरे आसपास
लौट जाते हैं वे जुगनू
और मैं
ताकती रहती हूँ
उन्हें आते और जाते हुए
उनकी झिलमिलाहट के साथ
जो तनिक सी
रोशनी का आभास
मुझे होता था
वह भी छिन जाता है मुझसे
और मेरी आँखें
निस्तब्ध सी
घुप्प अंधकार में
भटकती रहती है
नये उजास की
आशा के साथ...।

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