तेरी एक याद बची है

05-03-2016

तेरी एक याद बची है

डॉ. अमरजीत सिंह टांडा

तेरी एक याद बची है-
रात के आँगन में पड़ी
जगती बुझती -
जैसे मैं
जग बुझ रहा हूँ -
एक एक पल
एक एक साँस –
देर बाद राख कुरेदी
हर कण जल रहा था -
मेरी तरह-
ज़िदगी इतनी आसां न हुई
कि दोस्तों को पहन लेता
जैकेट की तरह
एक याद
को क्या कर सकते हो
सिर्फ सजाने के सिवा-
या गले लगाने के सिवा-
आधी रात को जब वो ही याद
उठ कर बैठ जाती है -
कई वर्ष रातें नहीं सोती-
और न ही सोने देती है - चाँद सितारों को -
आप ने कभी ऐसी रातों को देखा है -
न सोते - न रोते

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