साठोत्तरी हिन्दी ग़ज़ल में विद्रोह के स्वर एवं उसके विविध आयाम

05-10-2007

साठोत्तरी हिन्दी ग़ज़ल में विद्रोह के स्वर एवं उसके विविध आयाम

डॉ. भावना कुँअर

पुस्तक परिचय -

यह शोध प्रबन्ध डॉ० भावना कुँअर के पी-एच० डी० शोध ग्रन्थ का संक्षिप्त रूप है। "साठोत्तरी हिन्दी ग़ज़ल में विद्रोह के स्वर एवं उसके विविध आयाम" नामक शोध में डॉ० भावना ने अपने अथक परिश्रम से हिन्दी ग़ज़ल के सभी परिचित एवं अपरिचित ग़ज़लकारों की ग़ज़लों का समावेश करने का एक सफल प्रयास किया है। उनकी सहज़, सुसज्जित एवं श्रेणीवार भाषा ने शोध को एक ऐसा पुट प्रदान किया है कि हर वर्ग के लोग इसको सरलता से समझकर मन्त्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने साठोत्तरी हिन्दी ग़ज़ल के इतिहास को विभिन्न स्तम्भों में विभक्त किया है और प्रत्येक स्तम्भ को शोध में बहुत ही सफलता पूर्वक उभारा है। शोध के विभिन्न स्तम्भों में राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि आज के युग के लगभग सभी पहलुओं को सम्मिलित किया गया है। निश्चित ही यह शोध प्रबन्ध पाठकों के बीच में लोकप्रियता हासिल करेगा ऐसा ही हमारा विश्वास है।

पुस्तक से लिये गये कुछ अंश -

स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त विशेषकर छटे दशक के बाद देश में आने वाले परिवर्तनों के कारण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा नैतिक अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनके कारण जीवन मूल्यों में एक प्रकार का विचित्र सा विघटन हुआ और पूर्व स्थापित जीवन-मूल्य टूटकर बिखरने लगे। इस रूप में परिवर्तनों के कारण परिवेश के साथ-साथ व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, विश्वास तथा मानसिकता में भी बदलाव आए। इन बदलावों से हिन्दी-साहित्य भी अछूता न रह सका और उसकी सभी विधाओं के साहित्यकार भी उक्त परिवर्तनों से गहरे प्रभावित हुए। व्यक्ति और समाज़ के सम्बन्धों के नवीन आधार ढूँढे जाने लगे और नए मानदण्ड़ निर्धारित किए गये। इस प्रकार काव्यान्तर्गत "गज़ल" विधा में भी आक्रोश के स्वर मुखरित हुए। तत्कालीन परिवेश की यथार्थता एवं संवेदनशीलता के द्वारा ग़ज़लकारों ने उसे सार्थकता प्रदान करने का प्रयास किया। इस दिशा में सबसे अधिक सफलता दुष्यन्त कुमार को मिली। इसीलिये अधुनातम हिन्दी गज़लों का वास्तविक विकास और स्वरूप निर्धारण दुष्यन्त कुमार से माना जाता है। वे हिन्दी ग़ज़ल के कथ्य एवं शिल्प के एक प्रकार से पितामह माने जाते हैं। प्रायः सभी ग़ज़लकारों पर उनका प्रभाव दृष्टिगत होता है। यद्यपि मध्यकालीन साहित्य में भी ग़ज़ल नाम से अभिहित नगर वर्णनात्मक अनेक रचनाएँ प्राप्त होती हैं, किन्तु यह "कार्य प्रकार" अधुना प्रचलित "प्रकार" विशेष, जो अरबी, फारसी एवं उर्दू से हिन्दी में आया है, से भिन्न है। इसका छंद विधान अलग है।

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