सकूनबख़्श नज़ारे ख़रीद लेता है
अमित 'अहद’सकूनबख़्श नज़ारे ख़रीद लेता है
ये कौन ख़्वाब हमारे ख़रीद लेता है
हमें भँवर में डुबोने के वास्ते ही वो
नदी से उसके किनारे ख़रीद लेता है
हरेक ज़ुल्म को चुपचाप देखने वालों
ज़मीर कौन तुम्हारे ख़रीद लेता है
मुहब्बतों के सभी रिश्ते ख़ाक करने को
वो मज़हबों के शरारे ख़रीद लेता है
इशारे अम्न के होते नहीं कहीं से अब
ये कौन सारे इशारे ख़रीद लेता है
सुना है आज वो इतना बड़ा है सौदागर
कि मुफ़लिसों के सहारे ख़रीद लेता है
जदीद वक़्त की आवाज़ सुनने की ख़ातिर
'अहद' ग़ज़ल के शुमारे ख़रीद लेता है