साहित्य कुंज के लिए
श्याम त्रिपाठीनव वर्ष सभी को हो मंगलमय
ऐसी शुभ कामना करता हूँ
वसुधा पर सुख शान्ति रहे
ऐसे नव-वर्ष के प्रति श्रद्धा रखता हूँ।
जीवन का एक वर्ष
होता है कितना अल्प।
लेकिन सुख-दुख के अर्थ में
लगता जैसे एक कल्प॥
नव वर्ष आये धरा पर
जैसे हँसता हुआ गुलाब
होंठों पर मुस्कान धरे
और हृदय में सद्भाव।
फूले-फलें सभी विश्व के नर-नारी
हों समर्थ मानव जन, न हो कोई लाचारी
ईश्वर से सब डरें न करें झूठ मक्कारी
सच्चाई से मिथ्यता सदा है हारी।
सबके मन में भरा
हुआ हो आशाओं का दीप
शत्रु – मित्र के हृदय हों
जैसे निर्मल सीप
भावों से परिपूर्ण हो
हिन्दी का साहित्य
सभी लेखकों के मन में
जागृत हो औचित्य।
यह नया वर्ष आशा का
सूर्य जगायेगा
सत्य मार्ग पर चलने वालों का
झंडा फहरायेगा
साहित्य जगत में
आतंकवाद कुचला जाएगा
अंत में हंस का छीर – नीर
विवेक ही रह जाएगा।
“चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए
विपत्ति बिघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।“
- मैथिली शरण गुप्त