राज़ अपने तुमको बताती गयी
डॉ. भावना कुँअरराज़ अपने तुमको बताती गयी
नज़दीक दिल के यूँ आती गयी ।
हर दम रहता तेरा ही ख़्याल
यूँ ख़्वाब तेरे सजाती गयी ।
बंदिश तो न थी तेरे प्यार में
बन्धन में कैसे समाती गयी ?
मंज़िल को पाने की ही चाह में
क़दमों को अपने बढ़ाती गयी ।
तुम जो मिले ज़िदंगी में प्रिये
दुनिया मैं अपनी बसाती गयी ।