राज़ अपने तुमको बताती गयी

06-10-2007

राज़ अपने तुमको बताती गयी

डॉ. भावना कुँअर

राज़ अपने तुमको बताती गयी
नज़दीक दिल के यूँ आती गयी ।


हर दम रहता तेरा ही ख़्याल
यूँ ख़्वाब तेरे सजाती गयी ।


बंदिश तो न थी तेरे प्यार में
बन्धन में कैसे समाती गयी ?


मंज़िल को पाने की ही चाह में
क़दमों को अपने बढ़ाती गयी ।


तुम जो मिले ज़िदंगी में प्रिये
दुनिया मैं अपनी बसाती गयी ।

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