रात (रेखा मैत्र)
रेखा मैत्रचाँद का झूमर सजाए
रात तुम जाती कहाँ हो?
अपने आँचल में रुपहले तारे टाँके
रात तुम जाती कहाँ हो?
रजनई गन्धा-सी छरहरी दोलसी सी
रात तुम जाती कहाँ हो?
सर्पिणी सी चाल लेकर
नीलमणि आभा बिखेरे
रात तुम जाती कहाँ हो?
कहीं ऐसा तो नहीं
एक रात तुम मुझको डसोगी
ठीक से बोलो
मेरी ऐ रात!
रात तुम जाती कहाँ हो?