प्रतिदान
रंजना भाटियाधरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
घूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी