मेरी कविता रहने दो

01-02-2020

मेरी कविता रहने दो

सागर कमल (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

मुझसे सारा 'सागर' ले लो 
प्रेम की धारा बहने दो 
सारी दौलत छीन लो लेकिन 
मेरी कविता रहने दो


मैंने कब रोका है तुमको 
ख़ूब करो अपने मन की 
लेकिन मैं ख़ामोश रहूँ क्यों? 
मुझको मेरी कहने दो


मैं तुम-सा कमज़ोर नहीं हूँ 
मैं कविता का प्रेमी हूँ 
बहुत बड़ा दिल रखता हूँ 
दुनिया के दुःख सहने दो 


दुनिया पत्थर का टुकड़ा है 
इसका लालच क्या करना?
प्यार भरा दिल हीरे जैसा 
सबको ऐसे गहने दो


मैं सबका हूँ, सब मेरे हैं 
मेरा तो सिद्धांत यही 
मैंने तो अपनी कह दी 
उनको भी तो कहने दो 


तुमसे वो ना कही गई
बाक़ी क्या-क्या कहते हो! 
अब भी ना कह पाओगे 
जाओ हटो तुम रहने दो 


झील-नदी और दरिया-सागर 
मेरा सब कुछ मुझमें ही 
मैं कहता हूँ सुन भी लो 
खिलकर मुझको बहने दो 


मैंने भी तो ख़ूब सहे हैं 
तीर उलाहने-तानों के 
हल्की मेरी सोच नहीं है 
और अभी कुछ सहने दो 


बोझ तुम्हारे अहसानों का 
लिए आज भी फिरता हूँ 
थोड़ा ये भी कम हो जाए 
कुछ तो ऐसा कहने दो॥ 

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