मैं समय हूँ?
आचार्य बलवन्तमैं कौन हूँ, इसे वही बता सकता है,
जिसने मैं को जिया हो,
मैं को चखा हो, मैं को पिया हो।
मैं कौन हूँ? इसे मैं जानता हूँ,
मैं को ‘मैं’ पहचानता हूँ,
मेरी पहचान औरों से नहीं है,
अपनी पहचान मैं स्वयं को मानता हूँ।
मैं ही मूल हूँ विस्तार का,
बनते-बिगड़ते आकार का,
दिन-रात तो मेरी प्रवृत्तियों के प्रक्षेपण हैं,
मैं रुकता नहीं, अनवरत चलता हूँ,
मैं मिटता नहीं, बदलता हूँ,
मैं टूटता नहीं, पिघलता हूँ,
मैं ‘मैं’ हूँ, मैं समय हूँ।
मैं कृष्ण हूँ, क्राइस्ट हूँ, राम हूँ,
अद्वैत हूँ, अनाम हूँ।
तीर्थ हूँ, धाम हूँ,
मैं ही मैं का आयाम हूँ।
मैं ‘मैं’ हूँ, मैं समय हूँ।