माथे पे बिंदिया चमक रही

06-10-2007

माथे पे बिंदिया चमक रही

डॉ. भावना कुँअर

माथे पे बिंदिया चमक रही
हाथों में मेंहदी महक रही।

शर्माते से इन गालों पर
सूरज सी लाली दमक रही।

खन-खन से करते कॅगन की
आवाज़ मधुर सी चहक रही।

है नये सफ़र की तैयारी
पैरों में पायल छनक रही।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें