क्या सच क्या झूठ क्या सपना

01-11-2024

क्या सच क्या झूठ क्या सपना

डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर आनंद ’मुसाफ़िर’ (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

बचपन में माँ को जब मैं रात के सपने के बारे में बताता था तो माँ कहती, “पुतर, सपने-सपने ही होते हैं, भूल जाओ।” 

मैं भूल जाता था। सपने आते रहे, मैं भूलता गया, याद रखने का कोई औचित्य नहीं था। 

आ से आज्ञाकारी पुतर जो ठहरा। 

बड़े हुए तो पढ़ाया गया की ऊँचे और बड़े सपने देखो। सपने ही साकार होते हैं। बड़ा मकान, बीएमडब्ल्यू (BMW) कार,‘बीच’ पर एक‘ वेकेशन’ होम। 

अभी सोचता हूँ, माँ तो झूठ बोल नहीं सकती। 

1 टिप्पणियाँ

  • 13 Nov, 2024 08:52 PM

    न तो माँ ने झूठ बोला न ही पढ़ाने वालों ने। सपनों-सपनों में अन्तर होता है कि आँख खोलकर देखे सपने सच हो भी सकते हैं और बन्द आँखों वाले...! आपके भी आपकी यात्रा में सफलता मिले।

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