कल सुबह
डॉ. अमरजीत सिंह टांडाकल सुबह
नहीं मिलेंगी ये सभी झाँकियाँ
तीन रंग छोड़ते हुए जहाज़
रिहर्सल और प्रदर्शन
में थक टूट कर
सो जाएँगे
यह सभी जवान और बच्चे
तिरंगा लहराएगा अकेला
देशभक्ति गहरी
निंदिया में डूब जाएगी
शैल्फ पे पड़ा रहेगा सन्देश
ओढ़ कर तिरंगा -
तारीख़ का एक और पन्ना
सुनहरी होगा - टीवी पर
मज़दूर पूछेगा
कल क्या शोर था महानगरों में
मुझे काम नहीं मिला
हम भूखे सोये
कहते आज छुट्टी है -
आज "गणतंतर" है -
घर जाओ - और मनाओ -
मालिक हमरा दिवस तो
रोटी से मनता है-
छुट्टी न लिखी हमरी
तक़दीर में -
हमरी तक़दीर में -
तो रोटी लिख दो मालिक
हमने क्या लेना तंतर में से -
तंतर पेट नहीं भरते
भूखे सोते नहीं सपने
कभी रंगों से भी बुझी है प्यास – मालिक?