होली के रंग में
रीना गुप्ताउन्मुक्त गगन में
विस्तृत विशाल बहुरंग,
उड़ते उड़ते खिलते बहते
मस्त चाल से झूमते हँसते।
फिर क्यों हो जाते हैं
क्षण भंगुर ख़ुशी का एहसास
दिलाकर
अदृश्य इस जीवन से।
जीवन वाच्या हैं ये
जीवन परिभाषित हैं क्या ये?
प्रत्येक अपनी अपनी विशालता
का दम्भ भरकर,
विलुप्त हो जाती हैं
अनदेखी राहों पर।
तो ये जीवन मिश्रित हैं क्या?
मनुष्य हैं क्या ये?
तुम इनका असली चेहरा
नहीं पहचानते
ये आदमख़ोर हैं,
ये आदिम भी हैं।
ये जो विभिन्न रंग
अपने चेहरे पर लगाए
विचरण कर रहे हैं
ये इनकी नियमित ज़िंदगी का
असली बहुरूप है।
यही हम हैं
यही तुम हो
यही आने वाला भविष्य का
इशारा है,
यही बिगढ़ता सँवरता
जीवन चक्र है।