हर युद्ध तू स्वीकार कर - 2
ज्योति मिश्रानींदों से अपने जाग कर,
कर्मों का आँचल थाम कर,
कर्तव्य पथ पर आगे बढ़,
तू इक नयी शुरुआत कर॥
सहमा न रह, तू शोर कर,
सन्नाटों को सब तोड़कर,
पहचान इक अपनी बना,
दुनिया को पीछे छोड़कर॥
छू ले गगन, वो उड़ान भर,
तनिक भी तू, न अभिमान कर,
ऊँचाइयों से डर न तू,
इस धरा का भी सम्मान कर॥
कोमल ही न, तू सख़्त कर,
हृदय पर तू, पत्थर भी रख,
अपनों की हो, या परायों की,
हर भावना की क़द्र कर॥
संकल्प ले, न संकोच कर,
संघर्ष तू , पुरज़ोर कर,
सामर्थ्य तेरा अजेय है,
अराति को ये प्रमाण कर॥
विकराल वज्रपात पर,
पापियों के उन्माद पर,
इंसाफ़ की तलवार रख,
तू क्रांति का आह्वान कर॥
न झुक कभी, न उत्पात कर,
पराधीनता अस्वीकार कर,
प्रताड़ना, शोषण विरुद्ध,
हर युद्ध तू स्वीकार कर॥
हर युद्ध तू स्वीकार कर॥