फ़ुरसत से घर में आना तुम
डॉ. भावना कुँअरफ़ुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काजल सज जाना तुम।