धुरी
दीप्ति शर्माकब तक बदहवास
चलती रहोगी
एक ही धुरी से
एक ही रेखा पर
धागे भी टूट जाते हैं
सीधा खींचते रहने पर
अँधेरा नहीं है
तो पैर नहीं डगमगायेंगे
पर ये धुरी बदल रही है
सीधी ना होकर गोल हो गयी है
तुम्हारी चाल के अनुरूप
उसी दिशा में प्रत्यक्ष
तुम्हारी धुरी पर
बस मैं ही खड़ा हूँ।