धुआँ
सरिता यादवधुआँ धुआँ हर जगह धुआँ
कण-कण क्षण-क्षण गली हर बस्ती,
धुआँ-धुआँ शहर सारा,
घर गाँव खेत खलिहान बगल के बाग़ानों में
अब तो पेड़ पौधों में लिपटा धुआँ,
राह पर भी सिमटा धुआँ,
जिधर देखो धुआँ ही धुआँ है,
व्यक्ति भी सिगरेट से फूँके धुऑ।
मन जला धुआँ सा तन में फैला धुआँ।
इधर-उधर जिधर देखो हर तरफ फैला धुआँ।
अब तो हर वक़्त धुएँ के घनेरे हैं।
बसों ट्रेन या फिर फैक्टरियों से निकलता धुआँ।
घुटता दम धुएँ से किन्तु न करता परवाह कोई।
समझ कर न समझता व्यक्ति,
सर्प- सा डसता धुआँ।
अब हृदय मे लहू-सा बहता धुआँ।