बन्जर
सरिता यादवकह कर अरे अर्थ किसका?
लेकर जाऊँ भूल भ्रम से न।
चाह बस अब रोती आह मेरी,
प्रिय मिलन विरह का -
यह भाव किसका?
शान्त भुवन सी -
मन की भावना,
अब शान्त जीवन का
सुखद एहसास।
नहीं कोई संघर्ष संवाद का।
मैं कुछ चिंतन करती हूँ...
आज और कल का।
विश्व रूपी जीवन को
समझने का विचार,
मन में लाती कितनी बार?
हृदय का उद्गार सूखा सा है।
हँस कर ध्वनि सी जो तुम कर देते।
इसे रोचक रस से तुम भर देते।
सिंचन की अब आस किसको ?
मिथ्या मिलन की अब -
चाह किसको?
सूना सूना सृजन भूधरा का है,
शून्य पवन क्षितिज का।