बच्चों के बालमन को टार्गेट कर के रची गई : बंदर संग सेल्फी

01-08-2021

बच्चों के बालमन को टार्गेट कर के रची गई : बंदर संग सेल्फी

अजीत श्रीवास्तव (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

समीक्षित पुस्तक: बंदर संग सेल्फी
लेखिका: अनीता श्रीवास्तव, टीकमगढ़, मध्यप्रदेश
ISBN: 978-93-82224-93-8
मूल्य: 60 रुपया
प्रकाशक: ज्ञानमुद्रा प्रकाशन भोपाल मध्यप्रदेश
समीक्षक: अजीत श्रीवास्तव एडवोकेट 

गीत की अति सुंदर कलेवर, रंग व चित्रों से सजी पंद्रह रचनाओं की पुस्तक प्राप्त हुई। अनीता श्रीवास्तव शिक्षिका हैं तो कहीं न कहीं उनसे बाल मनोविज्ञान की पर्याप्त समझ अपेक्षित है। आम तौर पर संवेग, आवेग और प्रयोग में कविता रची जाती है परंतु बाल गीत विवेक से लिखे जाते हैं क्योंकि बाल मस्तिष्क से खेलने में तमाम बंदिशें लगी होती हैं। एक भी ग़लत बात या शब्द उनके मन को दूषित कर सकता है। बच्चों के स्तर के शब्द लय ताल के साथ मनभावन मनोरंजन भी देखना होता है। अनीता श्रीवास्तव अर्से से बालगीत लिख रहीं हैं, पत्रिकाओं में स्फुट रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। यह संकलन, बंदर संग सेल्फी, नई ख़ुशबू, आधुनिकता और वैज्ञानिकता लिए हुए है। रचनाओं की गेयता, इस पुस्तक की विशेषता है।

संग्रह की सभी कविताएँ छोटे बच्चों के बालमन को टार्गेट कर के रची गई हैं। शीर्षक कविता 'मोबाइल' इसके मर्म को उद्घाटित करती है, तो अगली रचना प्यारी गिलहरी से बालिका की मनभावन बातें हैं जिनमें वह इंग्लिश-विंग्लिश बोलने को कहती है। चिड़िया के नीड़ बनाने से मेहनत की सीख मिलती है। बालकों का अस्त्र है उनकी मुस्कान "माँ - बेटे के बीच तनी है चादर प्रेम भाव की" पंक्ति ही सब कह देती है। बच्चों को सर्दी में धूप के गुण बताती, अनुभूति पर लिखी गई रचना है। संस्कारों की सीख देती रचना है– "आओ दीप जलाएं"। रोटी गोल टैक्निकल ज्ञान परोसती है। बालमान के अवचेतन में परी और तितली एक रूप में चित्रित होती है तो तितली और "आओ निंदिया रानी" उन्हें पूर्ण रूप में कल्पना के धरातल पर प्रेषित करती है। बाल कविता का ध्येय बाल मन को पुष्ट करना भी होता है। 

जब बच्चा कुछ नहीं जानता तब माँ, दादी या नानी उसे काव्य रूपी रस पिलाती हैं जो लोरी के रूप में होता है जो पयपान के साथ बाल चेतना में चमत्कार करता है। सुंदर श्रेष्ठ कम और सुगम-सरल शब्दों में शहद से सनी "सो जाओ लल्ला" आती है जिसके बिना शायद संग्रह में कमी सी लगती। बड़े हो कर बच्चों का जिन भौतिक वस्तुओं से सबसे पहले लगाव होता है वे हैं खिलौने, गुड्डे-गुड़िया। कवयित्री का अंतर्मन लिखता है–

गुड्डे का है सूट गुलाबी, और है नीली टाई।
गुड़िया जी ने बड़ी दूर तक, फ्रॉक रखी फैलाई।

अनीता श्रीवास्तव की कविताओं में सीख देने का कमाल का संतुलन है, हरेक रचना कुछ सिखाती है। बच्चों में झगड़ा होना आम बात है तो मिल कर यहाँ रहो तुम शिक्षा और ज्ञान बाँटती है। चूंकि बंदर और सेल्फ़ी नामक कविता में मोबाइल के लाभ बताए गए थे इसलिए मोबाइल और आँख में चेतावनी भी दी है। आजकल बच्चों में हद से ज़्यादा मोबाइल का प्रयोग भी चिंता का विषय है। बाल कविताओं में जिज्ञासा का मनोवैज्ञानिक तत्व विद्यमान है जिसका प्रस्तुतिकरण प्रश्नवाचक पंक्तियों में हुआ है–

बूँद भला क्यों इतनी दूरी से आती है
हमको तो ये बात समझ में न आती है।

"ट्विंकल ट्विंकल" और "बा बा ब्लैक शीप" से इंग्लिश मीडियम के बोझ तले बच्चों को मातृ-भाषा में बाल-साहित्य मिलने से पुनः वही संस्कार लौटेंगे। संस्कार से ही संस्कृति बनती है। अनीता जी को साधुवाद एवम्‌ भविष्य में श्रेष्ठ सृजन हेतु शुभकामनाएँ।

समीक्षक 
अजीत श्रीवास्तव
Ajeet Shrivastav
राजीव सदन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश
पिन 472001

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