बचपन और भविष्य: सँवारने का ज़िम्मेदार कौन? 

01-09-2025

बचपन और भविष्य: सँवारने का ज़िम्मेदार कौन? 

अनुज पाल 'सार्थक' (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बचपन मानव जीवन का वह आधार स्तंभ है जिस पर उसके सम्पूर्ण अस्तित्व की नींव रखी जाती है। यह काल न केवल शारीरिक विकास, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक विकास का भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समय होता है। बच्चों की भावनाएँ कोमल होती हैं, उनकी सोच आकार ले रही होती है और उनके अनुभव जीवन को समझने का आधार बनते हैं। यदि इस नाज़ुक अवस्था में उन्हें उचित दिशा, प्रेम, सुरक्षा और संसाधन मिलें तो वे भविष्य में न केवल अपने लिए, समाज और राष्ट्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे में एक प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक रूप से उठता है। बचपन की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या यह केवल माता-पिता का कार्य है? क्या सरकार अकेले बच्चों की भलाई सुनिश्चित कर सकती है? या समाज को भी इस उत्तरदायित्व में भागीदार बनना चाहिए। 

माता-पिता, विद्यालय और शिक्षकों की भूमिका

बचपन के निर्माण में सबसे पहली और निकटतम इकाई परिवार की होती है। माता-पिता ही बच्चे के पहले गुरु, मित्र और मार्गदर्शक होते हैं। वे बच्चे को न केवल भोजन, वस्त्र और आश्रय प्रदान करते हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा, संस्कार, व्यवहार की शिष्टता और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी देते हैं। एक बच्चा जैसा अपने घर में देखता है और अनुभव करता है, वैसा ही वह धीरे-धीरे समाज में व्यक्त करने लगता है। अतः माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों को समझें, उन्हें विश्वास, आत्मबल और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाएँ। वे ही ब‌च्चे के पहले आदर्श होते हैं, इसलिए उन‌की ज़िम्मेदारी सबसे पहले और सबसे अधिक मानी जाती है। 

माता-पिता के बाद यदि किसी का बच्चा सबसे अधिक प्रभाव में आता है, तो वह विद्यालय और शिक्षक हैं। विद्यालय केवल औपचारिक शिक्षा देने का स्थान नहीं, वह सामाजिक अवसर, अनुशासन, सहिष्णुता, टीमवर्क, नेतृत्व और कर्त्तव्यनिष्ठा जैसे मूल्यों का प्रशिक्षण केंद्र है। शिक्षक बच्चों के भीतरी निहित प्रतिभा को पहचानते हैं और उसे विकसित करने में सहायता करते हैं। वे विद्यार्थियों को केवल पाठ्यपुस्तक के ज्ञान तक सीमित नहीं रखते, उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने की दिशा में भी कार्य करते हैं। 

वर्तमान समय में शैक्षिक संस्थाओं में बढ़ती व्यवसायिकता और शिक्षक-छात्र संबंधों में दूरी जैसे मुद्दे चिंता का विषय हैं। ऐसे में आवश्यकता है, कि शिक्षक अपनी भूमिका को केवल नौकरी नहीं, राष्ट्र निर्माण के भागीदार के रूप में देखें। 

सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी

बाल अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान और अनेक क़ानूनों में स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं कि शिक्षा का अधिकार, किशोर न्याय अधिनियम, बाल श्रम निषेध क़ानून, पोषण मिशन और विभिन्न स्वास्थ्य सेवाएँ बच्चों की समुचित देखभाल और विकास हेतु लागू की गई हैं। लेकिन सरकारी योजनाएँ तब तक प्रभावी नहीं होतीं जब तक उनका सही क्रियान्वयन न हो। 

सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, पोषण, सुरक्षा और मानसिक विकास के अवसर उपलब्ध कराए। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, वंचित वर्गों और शोषित समुदायों के बच्चों के लिए सरकार की सक्रियता और अधिक ज़रूरी हो जाती है। 

एक बच्चा केवल अपने माता-पिता या विद्यालय का उत्तरदायित्व नहीं होता, वह पूरे समाज का हिस्सा होता है। वह हमारे पड़ोस में खेलता है, हमारे ही साथ बाज़ार, बस या पार्क में जाता है। अगर कोई बच्चा किसी अन्याय, शोषण, हिंसा या भेदभाव का शिकार हो रहा है और हम मौन रहते हैं, तो हम भी अप्रत्यक्ष रूप से दोषी हैं। समाज को बालश्रम, बाल विवाह, लिंग भेद, यौन शोषण और नशे जैसी बुराइयों से बच्चों को बचाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। 

वर्तमान में आवश्यकता है सामुदायिक सह-भागिता की जिनमें महल्ला बालसंघ, बाल सुरक्षा समितियाँ, अभिभावक शिक्षक संघ, स्थानीय स्वयंसेवी संगठन इत्यादि तो बच्चों के हित में नियमित रूप से संवाद जागरूकता का संदेश पहुँचाएँ। 

मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका

आज का बच्चा पारंपरिक संसाधनों के अलावा मीडिया और सोशल मीडिया से भी प्रभावित होता है। फ़िल्मों, टीवी सीरियलों, वेबसीरीज़ और सोशल मीडिया कंटेंट ने बच्चों की सोच, बोलचाल, व्यवहार और जीवनशैली को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। यह प्रभाव सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी, यह इस पर निर्भर करता है कि बच्चा किस प्रकार की सामग्री देख रहा है और उसे कैसे आत्मसात कर रहा है। 

यह ज़िम्मेदारी मीडिया की है कि वह बच्चों के लिए ऐसी सामग्री प्रस्तुत करे जो सकारात्मक, प्रेरणादायक, नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण और शिक्षाप्रद हो। आज की पीढ़ी तेज़ी से तकनीक के साथ बढ़ रही है और ऐसे में मीडिया के पास यह अवसर है कि वह बच्चों को ज्ञानवर्धक, वैज्ञानिक सोच बढ़ाने वाली, रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने वाली सामग्री प्रदान करे। बच्चों की जिज्ञासा और कल्पनाशीलता को सही दिशा देना मीडिया का सामाजिक कर्त्तव्य है। 

साथ ही, अभिभावकों और शिक्षकों की यह अहम ज़िम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों की डिजिटल गतिविधियों पर सतर्क निगरानी रखें। बच्चों को सिर्फ़ मोबाइल या टीवी देने से उनका विकास नहीं होता, उन्हें यह भी सिखाना ज़रूरी है कि क्या देखना चाहिए, कितना देखना चाहिए और क्यों देखना चाहिए। अभिभावक यदि बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, उन्हें मार्गदर्शन दें और समय-समय पर डिजिटल डिटॉक्स कराएँ, तो बच्चे मीडिया के प्रभाव में आकर भी अपनी पहचान और मूल्यों से भटके बिना आगे बढ़ सकते हैं। 

अतः मीडिया और सोशल मीडिया को बालमन के अनुकूल बनाना और अभिभावकों की जागरूक भूमिका बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कुंजी है। हाल ही के वर्षों में अनेक घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि जब समाज, सरकार या अभिभावक अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाते हैं, तब बचपन संकट में पड़ जाता है। बाल शोषण, यौन हिंसा, भिक्षावृती में जबरन संलिप्तता, स्कूल ड्रॉपआउट और कुपोषण जैसी समस्याएँ भारत जैसे देश में अभी एक बड़ी चुनौती है। 

इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए समाज को सभी स्तर पर सजग होना होगा। सभी नागरिकों को यह समझना होगा, कि वह किसी भी बच्चे की मुस्कान, सुरक्षा और शिक्षा में योगदान दे सकता है। 

बचपन रक्षा, राष्ट्र सुरक्षा

किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके बच्चों में निहित होता है। उनका बचपन सुरक्षित, समृद्ध और ख़ुशहाल होगा, तो वे एक ज़िम्मेवार नागरिक बन सकेंगे, वे न अपने जीवन में सफल होंगे, समाज और राष्ट्र के लिए भी अपना योगदान देंगे। बच्चों की रक्षा करना केवल नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं, यह एक राष्ट्रीय दायित्व है, जिसे हम सबको मिलकर निभाना चाहिए। 

हमें समझना होगा कि बचपन की ज़िम्मेदारी किसी एक संस्था, व्यक्ति या वर्ग की नहीं, वह समग्र समाज की साझी ज़िम्मेदारी है। जब माता-पिता प्रेम देंगे, शिक्षक शिक्षा देंगे, सरकार अवसर देगी, समाज सुरक्षा देगा और मीडिया सकारात्मक मार्गदर्शन देगा, तो एक सशक्त, सुरक्षित और समृद्ध बचपन सम्भव होगा। 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बचपन केवल एक अवस्था नहीं, वह भविष्य की नींव है। यह नींव जितनी मज़बूत होगी, राष्ट्र उतना ही प्रगति करेगा। हर बच्चे की मुस्कान में ही देश की ख़ुशहाली छीपी है और इस सुस्कान को सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। 
 

1 टिप्पणियाँ

  • इस लेख से सभी को अपने जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए कि बचपन किसकी जिम्मेदारी है

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