औरत और बेल
डॉ. विनीता राहुरीकरआँगन में मुँडेर पर चढ़ आयी बेल पर लौकी लगी थी। अम्मा बेल पर से लौकी तोड़ने लगी।
"अरे अम्मा ये क्या कर रही हो, पता नहीं कहाँ कूड़े-करकट में से उगी होगी ये बेल, तुम इसका फल क्यों तोड़ रही हो?" बेटे ने पूछा।
"जब अपने आँगन में आ गयी है तो बेल भी अपनी और इसके फल भी अपने," अम्मा ने जवाब दिया।
"अरे पर पता नहीं कैसा बीज होगा....?"
"अरे बेटा बीज कैसा भी हो बेल को दोष थोड़े ही लगता है। फल तो अच्छा ही है ना," अम्मा ने प्यार से लौकी को हाथों में तौलते हुए कहा।
"ये बात तो सही कही तुमने अम्मा। बीज कहीं का भी हो हमें तो फल से मतलब है," बेटे ने कहा।
रसोईघर की खिड़की से सब देखती-सुनती बहु ने अपनी आँखों से बहते आसुओं को पोंछते हुए सोचा "काश कि ऐसी उदारता ये लोग उसके प्रति भी रखते तो आज उसकी बेटी को अपने नाना-नानी के पास नहीं रहना पड़ता। उसे तो यह कहकर अपनाने से मना कर दिया कि शराबी का खून है पता नहीं कैसा निकलेगा?"
क्या हुआ अगर उसका पूर्व पति शराब पी-पीकर मरा था। इसमें उस नन्ही बच्ची का क्या दोष? बेल और औरत की संतति में लोग क्यों फ़र्क करते हैं?