लावण्या शाह

लावण्या शाह

लावण्या शाह

मैं लावण्या, बम्बई महानगर मे पली बड़ी हुई - शोर शराबे से दूर, एक आश्रम जैसे पवित्र घर में, मेरे पापाजी, स्वर्गीय पं. नरेन्द्र शर्मा व श्रीमती सुशीला शर्मा की छत्रछाया में, पल कर बड़ा होने का सौभाग्य मिला।

मेरे पापाजी एक बुद्धिजीवी, कवि और दार्शिनिक रहे। मेरी अम्मा, हलदनकर इनस्टिटयूट में 4 साल चित्रकला सीखती रही। 1947 में उनका ब्याह हुआ और उन्होंने बम्बई मे घर बसा लिया। 

मेरा जन्म 1950 नवम्बर की 22 तारीख को हुआ। 

मेरे पति दीपक और मैं एक ही स्कूल में पहली कक्षा से साथ साथ पढ़े हैं। मैंने समाज शास्त्र और मनोविज्ञान मे बी.ए. होनर्स किया। 23 वर्ष की आयु में, 1974, में शादी कर के हम दोनों लॉस ऐन्जलस शहर में, केलीफ़ोर्नीया, यू.एस.ए. 3 साल, 1974 से 1976 तक रुके जहाँ वे एम.बी.ए. कर रहे थे।

उस के बाद हम फिर बम्बई लौट आये। परिवार के पास--- और पुत्री सिंदुर का जन्म हुआ। 5 वर्ष बाद पुत्र सोपान भी आ गये।

1989 की 11 फरवरी के दिन पापाजी महाभारत सीरीयल को और हम सब को छोड़ कर चले गये।

घटना चक्र ऐसे घूमे हम फिर अमेरिका आ गये। अब सिनसिनाटी, ओहायो में हूँ। पुत्री सिंदुर का ब्याह हो चुका है और मैं नानी बनने वाली हूँ। पुत्र सोपान ’जनरल मिल’ में कार्यरत है।

जीवन के हर उतार चढ़ाव के साथ कविता, मेरी आराध्या, मेरी मित्र, मेरी हमदर्द रही है। विश्व-जाल के जरिये, कविता पढ़ना, लिखना और इन से जुड़े माध्यमों द्वारा भारत और अमरीका के बीच की भौगोलिक दूरी को कम कर पायी हूँ।

स्वकेन्द्रीत, आत्मानुभूतियों ने, हर बार, समस्त विश्व को, अपना - सा पाया है।

पापाजी पं. नरेन्द्र शर्मा की कुछ काव्य पंक्तिया दीप - शिखा सी, पथ प्रदर्शित करती हुई, याद आ रही हैं। 

"धरित्री पुत्री तुम्हारी, हे अमित आलोक
जन्मदा मेरी वही है स्वर्ण गर्भा कोख!" 

और

"आधा सोया, आधा जागा देख रहा था सपना,
भावी के विराट दर्पण मे देखा भारत अपना!
गाँधी जिसका ज्योति - बीज, उस विश्व वृक्ष की छाया
सितादर्ष लोहित यथार्थ यह नहीं सुरासुर माया!" 

अस्तु विश्व बन्धुत्व की भावना , सर्व मंगल भावना हृदय में समेटे, जीवन के मेले में हर्ष और उल्लास की दृष्टी लिये, अभी जो अनुभव कर रही हूँ उसे मेरी कविताओं के जरिये, माँ सरस्वती का प्रसाद समझ कर, मेरे सहभागी मानव समुदाय के साथ बाँट रही हूँ। 

पापाजी की लोकप्रिय पुस्तक "प्रवासी के गीत" को मेरी श्रद्धाँजली देती, हुई मेरी प्रथम काव्य पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो गई है।
स्वराँजलि पर मेरे रेडियो वार्तालाप स्वर सम्राज्ञनी सुर्षी लता मंगेशकर पर व पापाजी पर प्रसारित हुए हैं।

महभारत सीरीयल के लिये 16 दोहे पापाजी के जाने के बाद लिखे थे!

एक नारी की संवेदना हर कृति के साथ संलग्न है। विश्व के प्रति देश के प्रति, परिवार और समाज के प्रति वात्सल्य भाव है। भविष्य के प्रति अटल श्रद्धावान हूँ। और आज अपनी कविता आप के सामने प्रस्तुत कर रही हूँआशा है मेरी त्रुटियों को आप उदार हृदय से क्षमा कर देंगे

-विनीत,

लावण्या