यूँ तो इक नाज़ुक सी फूलों की वो डाली है

31-10-2014

यूँ तो इक नाज़ुक सी फूलों की वो डाली है

अवधेश कुमार मिश्र 'रजत'

यूँ तो इक नाजुक सी फूलों की वो डाली है।
आँखों में उसकी ममता की अद्भुत लाली है॥

 

जब प्रेम करे तो राधा है प्रतिशोध करे तो पांचाली,
अंत सुनिश्चित है उसका बुरी नज़र जिसने डाली।
स्नेहमय ही है हृदय से, क्रोध में वो माँ काली है॥

 

घर को पाले हमें सम्भाले कष्टों में भी मुस्काती है,
हर वार सहे ख़ुद पर तुफ़ानों से परिवार बचाती है।
उसके होने भर से घर की बगिया में हरियाली है॥

 

त्याग की मूरत है वो खुशियों की फुलवारी है,
ईश्वर की सबसे अद्भुत रचना तो ये नारी है।
प्रियतम है वो उसकी तो हर इक बात निराली है॥

 

हो चाहे कोई भी दुविधा इक पल में वो दूर करे,
हिम्मत ना कभी वो हारने दे जीने को मजबूर करे।
दे प्रेम "रजत" को वो नारी ही कवि बनाने वाली है॥

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