मुझे आकाश चाहिये
सपनों की अनवरत उड़ान के लिये
मुझे ज़मीन भी चाहिये
पलभर थमकर
अपने लहुलहान पंजों को
सहलाने के लिये।
धधकते प्रश्नों से
क्षण भर के लिये निर्वासन चाहिये
ज़िंदगी की रेलमपेल में अचानक
विराम का एक पल चाहिये
छू सकूँ आकाश को भी
और पैरों से धरती पर
पंख लगा दे हवा मुझे
और तपिश सूरज की हो तो
सर्द वीरानी की दुनिया
चाँदनी सी जगमग जाये.
सरिता का प्रवाह चाहिये
मरूभूमी के बीच
और बरगद की छाया
झुलसाती काली सड़कों पर।
मुझे इन्द्रधनुष चाहिये
ज़िंदगी के हर रंग की
पहचान के लिये
मुझे संकल्प चाहिये
अनजान पड़ावों के लिये
अपरिचित यात्रा के लिये।

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