यह लॉकडाउन है
डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया 'मौलिक’यह लॉकडाउन है,
चल पड़े,
इसे लगते ही
वे मीलों के सफ़र
पैदल ही तय करने
कोई सौ, कोई पाँच सौ,
कई हज़ारों की दूरी,
हालत ख़स्ता,
पस्त
रक्तल्प धमनियाँ
और शिराएँ
पैर अंकिश्त,
पेट चिपका
पीठ से,
अधोमुख
और
दिल की धड़कन डाउन है,
यह लॉक डाउन है
झुलसा चेहरा
लथपथ काया
पैरों में
बिबाई
गहरे घाव
छालों के साथ
रक्त का आख़िरी
क़तरा
बस
दौड़ रहा है
पारे की एक बूँद की तरह
जीर्ण देह में,
एक आस
घर पहुँचने की
मंज़िल दूर
विदीर्ण हृदय है,
पर क्या करना उन्हें
जिनके सर पर क्राउन है
यह लॉक डाउन है
उपार्जन की
उम्मीद पर
चले थे
शहर की ओर
छिन गया
सब कुछ,
किसी को बेचनी पड़ी
अपनी पायल,
तो किसी को अपने बैल
कइयों को
ख़ुद ही जुतना पड़ा,
नौनिहालों
को कंधों बिठाये
वत्सला
और
माँ को पीठ पर
लादे पुत्र
खाली पेट,
एक मुट्ठी
भुने चने
कुछ सिंके आटे
व
भरपूर उम्मीद
के बल पर
कर रहे मैराथन
उन्हें नहीं पता
पुरस्कार
स्वरूप
जायेगी जान
यह
मौत का कामडाउन है।
यह लॉक डाउन है।
निस्पृह
तीन दिन बाद
खाना देखकर रो उठती है
बदनसीबी
और दिल
दहल जाता है
हमारा,
अज़हल
इख़्तिराई बयानों
को सुनकर
लगता है
खाल उतारकर
चमड़ा
रँगने
की तैयारी है,
झूठे भरोसे
आश्वासनों ने
छला उन्हें
वहाँ चर्बआखोर निगहबान है,
यह लॉक डाउन है।
इंतज़ाम के
अख़लकंद
से मूर्ख बनती
ग़रीब अवाम,
मधुप की तरह
जिसका
सार शहद
निचोड़कर
छोड़ा गया
झुण्ड में
मवेशियों के माफ़िक
भूख से रिरियाती हुईं
इस तपती गर्मी में
बदइंतज़ामी के शिकार
इनकी आफ़त में जान है,
नींद
कैसे आती होगी
उन्हें
जो इस देश के हुक्मरान है।
यह लॉक डाउन है।
शब्दार्थ-
अंकिश्त=जली हुई लकड़ी
निष्पृह=जो मिल जाये उसी पर गुज़ारा करना
इख़्तिराई=फ़र्ज़ी
चर्बआखोर=मुफ़्तखोर
अख़लकंद=झुनझुना
अज़हल=मूर्खतम
निगहबान=देखरेख करने वाला