वोमिटिंग बैग्स
शिवानन्द झा चंचलअंकित' और 'सौरभ' शहर की एक नामी और एक ही मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। दोनों अक्सर किसी विषय को लेकर एक-दूसरे से भिड़ते रहते थे। कभी-कभी दोनों अपनी वैचारिक-टकराव के दौरान अपने अन्य सहयोगियों से खेमेबंदी की अपेक्षा भी रखते। और इसी प्रयास के दौरान वे दोनों अकाट्य तर्क भी प्रस्तुत करते, जिससे उनके अन्य सहयोगी मज़े ले-लेकर श्रवण करते... पुनः स्थिति सामान्य होते देर-न लगती!
आज फिर लंच के समय कैंटीन में दोनों शुरू हो गए।
अंकित ने घोषणा की, "सोशल साइट, समाज को गुमराह कर दिशाहीन बना रहे हैं, भावी पीढ़ी बरबाद हो रही रही है, लोगों का चैन-सुकून सब छीन रहे हैं... कोई भी आकर इस पर अपनी वैचारिक उलटी कर चला जाता है... अतः इसे यदि! 'वोमिटिंग बैग्स' कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।"
इतना सुनते ही सौरभ 'सोशल-साइट' के पक्ष में अनगिनत तर्क प्रस्तुत करने लगा। जैसे- सूचना का असीमित-भंडार, अपने विचारों को पूरी आज़ादी के साथ रखने का प्लेटफ़ॉर्म... और न जाने! क्या-क्या!
सहसा कैंटीन के टीवी स्क्रीन पर चल रहे समाचार-चैनल की एंकर ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "फलाने शहर में दो गुटों में हिंसक झड़प ...दोनों समुदाय से दो-दो व्यक्ति गिरफ्तार... ज़िलाधिकारी ने कि दंगे की वज़ह 'सोशल-साइट' पर फैलाये गए उन्मादी सन्देश को बताया... तथा अगले चौबीस घंटों के लिए ...शहर में इंटरनेट सेवा पर रोक का आदेश दिया है...!"