तुम्हें भूलूँ भी तो कैसे मैं
गौरव कुमार महतो
तुम्हें भूलूँ भी तो कैसे मैं
तुमने मुझ पर अमिट छाप जो छोड़ी है
तुम्हें भूलूँ भी तो कैसे मैं
तुमने मेरे जीवन को नये रास्ते पर जो मोड़ा है।
सच कहूँ,
आज भी तुम मुझे याद आते हो
और अत्यधिक मन को भाते हो
तुमसे दूर तो रहता हूँ
पर तुमसे ज़्यादा मजबूर मैं रहता हूँ
न जाने ये कैसा बन्धन है
जो मुझे बाँध कर रखता है
एक सीमित दायरे में।
सोचता हूँ,
इस बन्धन को तोड़ दूँ
और एक बार फिर से
इस अनजान रास्ते को तुम्हारी तरफ़ मोड़ दूँ ।
पर क्या करूँ ,
मजबूर हूँ
शायद इसलिए
आज भी तुमसे दूर हूँ।
1 टिप्पणियाँ
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वाह