सुना तू है स्वाभिमान का रखवाला
माँ भारती का है तू वीर मतवाला
कहाँ गया फिर तेरा जोश जुनून
कहाँ खो गया रे तू हिम्मतवाला
याद रख तुझसे ही है यह धरा
इसकी उम्मीदों पर उतर खरा
तू है उपवन का खिलता कुसुम
तुझसे है यह चमन हरा-भरा
क्यों चुनर चोली चुम्बन में तू डूबा
इतराते बलखाते यौवन पर झूला
उठो! उठो जागो टटोलो खुद को
चल पथ पर क्यों मंजिल को भूला
मत डूब मधुर रात के आलिंगन अंगड़ाई में
गालों के शर्मीलेपन पर आँखों की सुरमाई में
यह विलास है- है यह क्षणिक नयनसुख
भर तूफ़ानी जोश अब अपनी तरुणाई में
उठो! मत देर कर कर लक्ष्य सन्धान
कुछ कर गुज़र, हो तुम पर गुमान
दृढ़ता से कर मुकाबला बना साख
देख कर्म तू ज्यों पार्थ ने देखी मीन आँख
उठो! मैं तुमको समझाने आया हूँ
भारत माँ के घाव दिखाने आया हूँ
मत डूब अब इस भोग-विलास में
त्याग निंद्रा मैं तुम्हें जगाने आया हूँ
भूल सुरीला राग जो तुझे रिझाता हो
वो शत्रु शर सम है जो सन्मुख शर्माता हो
पहचान अरि, जो मगर अश्क बहाता हो
उठो विवेकानंद तुम्हीं भार्त निर्माता हो।