तन्हाई (मांडवी सिंह)
मांडवी सिंहमैंने भटकते देखा है
मेरी तन्हाई को तन्हा कहीं
मेरी ख़ामोशी में ख़ामोशी कम
तेरी यादें ज़्यादा हैं।
क्यों ना हो
हाथों कि लकीरें बेबस मेरी
मेरे हिस्से ये ज़मीं कम
वो आसमां ज़्यादा है।
मैंने भटकते देखा है
मेरी तन्हाई को तन्हा कहीं
मेरी ख़ामोशी में ख़ामोशी कम
तेरी यादें ज़्यादा हैं।
क्यों ना हो
हाथों कि लकीरें बेबस मेरी
मेरे हिस्से ये ज़मीं कम
वो आसमां ज़्यादा है।