तंग आकर उनकी बेवफाई से

31-10-2014

तंग आकर उनकी बेवफाई से

अवधेश कुमार मिश्र 'रजत'

तंग आकर उनकी बेवफाई से
पीछा छुड़ा लिया मैंने,
सर पर चढ़ कर जो बैठे थे उन्हें
आज ज़मीं पर गिरा दिया मैंने।

था बहुत उन्हें गुरूर खुद पर 
इठलाते थे बलखाते थे,
जितना भी मैं मनाता उनको
वो उतना ही इतराते थे।
जब बिछड़ रहे थे वो मुझसे
आँखों को घुमा लिया मैंने।

सर पर चढ़ कर जो बैठे थे उन्हें
आज ज़मीं पर गिरा दिया मैंने।।

बिन उनके यह सच है कि अब
विरान सा गुलशन लगता है,
सावन के महीने में भी अब तो
पतझड़ सा सबकुछ लगता है।
तोड़ बहारों से हर इक रिश्ता 
खुद को तन्हा बना लिया मैंने।

सर पर चढ़ कर जो बैठे थे उन्हें
आज ज़मीं पर गिरा दिया मैंने।।

उम्मीद है वो फिर आयेंगें
सूनी बगिया को मेरी महकायेंगें,
पहले जैसे इस बार ना फिर वो
अपनी अदाओं से मुझे जलायेंगें।
वो थे "रजत" कभी सर के ताज मेरे
इसलिए उन्हें माफ किया मैंने।

सर पर चढ़ कर जो बैठे थे उन्हें
आज ज़मीं पर गिरा दिया मैंने।।

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