स्थिर परम्पराएँ
रचना गौड़ 'भारती'आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
कुछ ताजिये ठंडा करें
कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ
बारम्बार रीतियों के चक्र में
कुछ नीतियों को खोदें
कुछ को दफनाएँ
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से
इनको थोड़ा अलग बनाएँ
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
ऊँचे ढकोसलों की ऊहापोह में
इमान से गिरता इंसान बचाएँ
ठकुरसुहाती सुनने वालों को
उनका चरित्र दर्पण दिखलाएँ
होगा न रंगभेद डुबकी लगाने से
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
नीले अंबर से सागर का समागम करवाएँ
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ