शब्दों के मेले
अनिल खन्नागीत, ग़ज़ल, नज़्म
क़िस्सा या कहानी
सब शब्दों के मेले हैं
जज़्बातों के ढेले हैं।
कभी
मन की गहराई में
उतर जाते हैं
तो कभी
कच्चे कोयले की तरह
ऊपर ही
तैरते रहते हैं।
कभी
सपनों की रूहानी दुनिया में
ले जाते हैं
जहाँ आशा के
फूल खिलते हैं,
और कभी
अतीत के जंगल में
खो जाते हैं
जहाँ निराशा के
पत्ते झड़ते हैं।
युग-युगांतर से
इन शब्दों को हम
खोजते रहे
तराशते रहे ,
जज़्बातों के हार में
पिरो कर
जीवन की चौखट पर
सजाते रहे,
ताकि
पीढ़ी दर पीढ़ी
कभी न भूलें
कि
ज़िंदगी कितनी
अधूरी है
इनके बिना।