संवेगों की भावप्रवण यात्रा है - ’तुरपाई’

15-12-2019

संवेगों की भावप्रवण यात्रा है - ’तुरपाई’

डॉ. अंजना अनिल (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

समीक्ष्य पुस्तक : तुरपाई तथा अन्य कहानियाँ
लेखक : वीणा विज ’उदित’
आस्था प्रकाशन
लाडोवाली रोड, जालन्धर (पंजाब)
मूल्य : २५०.०० रुपये
पृष्ठ संख्या : 107


कहानीकार वीणा विज ’उदित’ - जीवन की संघर्षमयी यात्रा के दौरान आती हुई चुनौतियों, विषमताओं एवं विसंगतियों को जिस बख़ूबी से संवेदनात्मक शैली में पिरोकर- संभावनाओं सहित प्रस्तुत करती हैं - उनकी ये बेजोड़ कलात्मकता है। संबंधों में उभर कर आता द्वन्द्व, पीड़ा और बेबसी जीवन की त्रासदी है, लेकिन नई आकांक्षाओं का आसमान वीणा विज की क़लम का जब आधार बनता है तो उनकी रचनाएँ बड़ी सहजता से हमें एक नया रास्ता दिखा रही होती हैं।

इस क्रम में तुरपाई – उनका एक नवीन कहानी संग्रह है जिसके अधिकतम नारी पात्र, संघर्ष और यातनाओं तक को चुनौती मानकर अपनी नैतिक समझ के आँगन को झाड़-बुहार कर संभावनाओं की देहरी तक आ खड़े होते हैं।

’तुरपाई’ - कहानी इस संग्रह की विशेष प्रतिनिधि एक ऐसी सामाजिक कटुता है जहाँ तक आते-आते नारी हृदय की अथाह पीड़ा बेबसी के गहरे रसातल तक को पुकार उठती है- मैं कहाँ जाऊँ? कहना होगा कि एक अनपढ़ स्त्री की वेदना-तमाम अस्वीकृतियों की उछलन का शिकार बनी है। वीणा विज यथार्थ के सहारे शोषण पर सवाल उठा रही हैं। तथाकथित मर्दानगी को व्यक्त कर रही हैं। हमारे अहसास कहानी की स्त्री पात्र से संवाद कर रहे हों जैसे।

निःसंदेह ज्यों-ज्यों दृष्टि संग्रह की कहानियों से गुज़रती है, पाठक के दिल को आश्वस्त करती है कि इन पृष्ठों पर मात्र लफ़्ज़ों की कतारें नहीं, समयगत सच्चाइयों की मुहर लगी है।

संग्रह की कहानियाँ - बीते हुए कल और आज के बीच एक सेतु भी हैं। विराट, व्यापकता और विस्तार को पा लेने की चाहत समेटे हुए -नवसृजन के पक्ष का भी स्वागत बोध है।

अपने वैचारिक धरातल को और ज़्यादा पुख़्ता बनाने के संकल्प बनाकर वीणा विज ने अपनी समयानुकूल सहजता को दर्शाया है। जड़ता से बाहर निकलने का रास्ता सुझाया है, दिखाया है।

व्यक्तित्व और कृतत्व को निखार कर अँधेरों के बीच से कोई कैसे प्रकाश की किरण खींच लाता है, इन कहानियों का ये भी एक सफल संदेश है। कलियों की गुफ़्तगू को वीणा विज ने अनुभूतियों के स्तर पर जीया है। इसलिए कहना होगा कि ये कहानियाँ भावप्रवणता का एक विरल प्रहाव हैं। शुभकामनाएँ।

डॉ. अंजना अनिल
 

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