संवाद
कहफ़ रहमानी 'विभाकर'अरी ओ री
सलिले! तुम जातीं किधर
पगचाप सुनूँ या फिर कि कोई आकृत संवाद
तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर नहीं।
क्षोभ कि मैं तुम्हारी राह का पत्थर नहीं।
स्पर्श माध्य है इस परिधि का
और रक्त परिसंचरण?
अभीष्ठ मूलावसाद यह।
मनोवृत्त _ मन:श्रुत, मन: प्रणीत।
मुग्द्ध हिल्लोल गुरुमंत्रणा।