समाज की विभिन्न संवेदनाओं को छूता संग्रह : 'कौन तार से बीनी चदरिया'

01-09-2019

समाज की विभिन्न संवेदनाओं को छूता संग्रह : 'कौन तार से बीनी चदरिया'

पवन चौहान


समीक्षित कृति : कौन तार से बीनी चदरिया (कहानी संग्रह)
लेखिका : अंजना वर्मा
प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स
1/ 10206, लेन नं० - 1, वेस्ट गोरख पार्क
शाहदरा, दिल्ली - 110 032
पेपर बैक, मूल्य : 125 रु०
पृष्ठ  : 120

पिछ्ले दिनों प्रसिद्ध कहानीकार अंजना वर्मा जी का कहानी संग्रह “कौन तार से बीनी चदरिया” पढ़ने का मौक़ा मिला। कहानीकार ने कहानियों की पृष्ठभूमि को इस क़दर से रचा है कि पाठक अपने आप को इन कहानियों के अंत तक पहुँचने से रोक नहीं सकता। बहुत ही सरल शब्दों में बुनी गई ये कहानियाँ आज के हमारे समाज के वर्तमान हालात, उसके बदलते स्वरूप को बख़ूबी प्रस्तुत करती हैं। कहानीकार की कथा शैली बहुत समर्थ, सरल और कथा के चरित्रों के साथ पूरा न्याय करती है। संवेदनाओं को गहरे तक छूती इस संग्रह में कुल 13 कहानियाँ हैं। 

संग्रह की पहली कहानी “कौन तार से बीनी चदरिया” है। कहानी थर्ड जेंडर की व्यथा कथा, उनके अपने परिवार द्वारा उनके तिरस्कार पर बुनी एक सुंदर कहानी है। सुन्दरी और कुसुम की आपस की बातचीत उनके परिवार के उनके प्रति रवैये और उनके दर्द को बताती है। उनका अपना परिवार है। दोनों अपने इस लिंग में होने का ग़म मनाती हैं और एक-दूसरे को कुछ इस तरह तसल्ली भी देती हैं- फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद कुसुम बोली, “जाने दे सुन्दरकी। हम सबको उ सब नहीं सोचना चाहिए। हमको भी तो उसी ने बनाया जिसने मरद-मानुष बनाया, जनी-जात बनाया। काहे सोच करैं हम? पेड़ में भी देख तो सब पेड़ों में फूल-बीज कहाँ होत है? हम भी हैं उसी तरह। लेकिन हैं तो उसी के हाथ के बनाए। वही रामजी हमें भी बनाए हैं।” सुन्दरी बताती है कि परिवार वाले उन्हे अपने साथ रखने से किस क़दर घबराते हैं। कहानी हमारे समाज की अनखुली परतों को उधेड़ती है। सुन्दरी की माँ का उसके साथ घर में न मिलकर मंदिर में मिलना थर्ड जेंडर के प्रति उनके परिवार के नज़रिये को समझा देता है। 

संग्रह की दूसरी कहानी ‘यहां-वहां हर कहीं’ बुज़ुर्गों के अकेलेपन की दास्तां है। कहानी में मुख्य पात्र रवींद्र बाबू, उनका बेटा संजीव और बहु सुरुचि है। वे सब रवींद्र बाबू का पूरा ख़्याल रखते हैं लेकिन बहु-बेटे के नौकरी में चले जाने के बाद की एकाकी की पीड़ा से रवींद्र बाबू त्रस्त हो उठते हैं। उन्हें अपने संवादों, मन में चल रही कोई हलचल और दुख-सुख को किसी के सामने रखने का प्लेटफ़ॉर्म नहीं मिल पाता। वे इस अकेलेपन में घुटते चले जाते हैं। अंत में उन्हे अपना गाँव याद आने लगता है। वे कहते हैं- “अपनी मिट्टी से अलग होना बहुत कष्टदायक होता है। अपनी मिट्टी में रहकर कष्ट भी सुखमय हो जाते हैं।”

‘पेड़ का तबादला’ कहानी पेड़ के जन्म से लेकर दूसरे स्थान तक रोपे जाने के साथ पेड़ के अंतर्मन में उठती पर्यावरण की चिंता और शहर में फैलते प्रदूषण, वहाँ की आबोहवा का वर्णन है। मनुष्य की स्वार्थपरता को उकेरती, कई प्रश्नों को लिए यह कहानी हमें प्रकृति की दशा-दिशा के क़रीब पहुँचा देती है। ‘लालबती की आवाज’ एक वेश्या के जीवन को लेकर लिखी गई कहानी है। यह उस मजबूर माँ की दर्द भरी दास्तां है जो अपने बच्चों को उनके पिता का नाम ताउम्र नहीं बता पाती। शबनम खातून और उसकी माँ की कशमकश और उनके संघर्ष की कथा सुनाती यह  कहानी  वस्तुत: नारी जीवन के ही एक पहलू की कथा है।

‘सोयी झील में पत्थर’ पति-पत्नी के रिश्तों की उस कड़वाहट को अपने कथानक में समाए है, जब लता को उसका पति आलोक उसकी कोई ग़लती के बिना किसी और के साथ रहने लग जाता है और लता को दर-दर भटकने के लिए अकेला छोड़ देता है। यह वह समय था जब वह अपना मायका छोड़कर पति के घर में रहने आई थी। लता को उस वक़्त सबसे ज़्यादा आलोक के सहारे की आवश्यकता थी। कहानी पुरुष प्रधानता के रौब और उसके स्वार्थीपन को बख़ूबी दर्शाती है। परंतु जब आलोक की प्रेमिका की मृत्यु हो जाती है तो उसे अपनी ज़िंदगी से ठुकराई अपनी पत्नी लता की याद आती है। उम्र के इस अंतिम से पड़ाव में वह उसके पास बसने चला आता है। आलोक का दोबारा से अपनी ज़िंदगी में आना लता को ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसकी ज़िंदगी की शांत झील में किसी ने एक बड़ा-सा पत्थर गिरा दिया हो। आलोक के आने से लता को अपने सारे ग़म एकदम से स्मरण हो आते हैं। यह कहानी अपनी भाषा शैली और कथोपकथन के साथ अपने उद्देश्य को पूरा करती है।

अगली कहानी ‘नीला शून्य’ सूखे कुएँ और उसमें गिरने वाले व्यक्ति के मनोभावों का सुन्दर विश्लेषण है। कहानी ‘अज्ञातवास’ गोहाटी से आए एक युवक राजकुमार की कहानी है। राजकुमार की गाड़ी की ठोकर से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है जबकि ग़लती उसकी नहीं होती। वह घर से दूर मैडम नीहारिका के यहाँ एक ड्राइवर बनकर अज्ञातवास सा जीवन जी रहा होता है। राजकुमार बेहद शर्मिला और कम बात करने वाला युवक है। राजकुमार के अतीत और वर्तमान को लेकर बुनी कहानी की कथा शैली बहुत रोचक है। जब राजकुमार का रहस्य खुलता है तो पता चलता है कि वह ग़रीब नहीं बल्कि ख़ूब पैसे वाला आदमी है। बस यहाँ गुमनाम रहकर वह अपने लिए न्याय का इंतज़ार करता है। हालातों की मार व्यक्ति को कहाँ से कहाँ ले जा सकती है कहानी समझाती है। जब राजकुमार का केस सुलझ जाता है और वह अपने घर जाने की तैयारी करने लगता है तो उस ख़ुशी का, उसके अज्ञातवास के ख़त्म होने का ज़िक्र कथाकारा ने अपनी बेहतरीन भाषा शैली के द्वारा बहुत ही सुन्दर तरीक़े से किया है। यह बेहद ही रोचक कहानी है।

‘दुर्घटना’ कहानी उस भयावह समय को व्यक्त करती है जब किसी दुर्घटना के समय मार-काट, गुंडागर्दी और लूटखसोट जैसे नकारात्मक व हिंसात्मक पहलू हमारे समक्ष आ खड़े होते हैं। कोई दुर्घटना जहाँ मारपीट और झगड़े कारण बनती है वहीं ऐसी स्थिति में गुंडागर्दी और लूटखसोट अपने विकराल रूप में हमारे समक्ष खड़ी हो जाती है। ऐसे माहौल का फ़ायदा उठाकर कुछ अपनी स्वार्थसिद्धि में लिप्त हो जाते हैं। वे लोग ऐसे ही पलों की तलाश में रहते हैं। अपने कहन में खरी उतरती इस पक्ष की यह कहानी है। ऐसे वक़्त में ग़रीब का ही सबसे ज़्यादा नुक़सान होता है। ‘जगमगाती रात’ मनोज और कामिनी शुक्ला की मैरिज एनीवर्सरी का पूरा चित्रण है जिसमें कामिनी की ढेरों आकाक्षाएँ हैं। परंतु इस रजत जयंती समारोह में भी कामिनी के सारे अरमान एक बार फिर से धराशायी होकर रह जाते हैं जब एक क़ीमती तोहफ़ा लेकर मनोज आज के दिन भी अपनी प्रेमिका के मोहपाश में बँधा अपने क़दमों को उसके घर की ओर मोड़ लेता है। कामिनी बिस्तर पर पड़ी जड़-सी होकर रह जाती है। सच्चाई आज भी उसको अपना रूप दिखाने से बाज़ नहीं आती। बहुत थोड़े शब्दों में रची गई यह कहानी अपनी संवेदनाओं से पाठक को गहरे तक छूती है। 

‘रेलवे क्राॅसिंग’ कहानी रेलवे क्राॅसिंग के उस क्षेत्र का पूरा ख़ाका पाठक के सामने खींचती है जहाँ घंटों क्राॅसिंग के खुलने के इंतज़ार में खड़े रहने के बाद जब फाटक खुलते हैं और जिस गति से सब वाहन अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं। फिर सभी की इस क्राॅसिंग को क्राॅस करने की जद्दोजेहद सुस्ताने बैठे बहुत से यात्रियों के जूते सड़क पर ही छुड़वा देती है। छूट गए जूते सबकी बेसब्री को बख़ूबी समझा देते हैं। रेलवे क्राॅसिंग के क्षेत्र का वर्णन कहानीकार ने बहुत ही सुंदर तरीक़े और रोचकता के साथ हर पहलू को छूते हुए खूब बारीक़ी के साथ किया है। रेलवे क्राॅसिंग की हालत की बात कहानीकार कुछ इस तरह से करती है- ‘रास्ते में वही क्रॉसिंग पड़ी थी जो अभी भी बंद थी। वर्षों बीतने के बाद भी उस जगह पर कुछ नहीं बदला था। न ही सड़क में कोई परिर्वतन हुआ था, न ही गुमटी ही आधुनिक रूप ले सकी थी। अभी भी वही लोहे का मोटा डण्डा था जो कभी सोकर तो कभी खड़ा होकर अपनी ड्यूटी बजा देता था। अभी वह सोया पड़ा था अपनी ड्यूटी बजाता हुआ।’

संग्रह की अगली कहानी ‘हाॅर्स रेस’ परिवार की ख़ुशियों को तरजीह देने की बात कहती हुई बहुत संवेदनशील कहानी है। रुपये कमाने की जद्दोजेहद में कई बार हम अपने परिवार की ख़ुशियों उनके जज़्बातों से खेल बैठते हैं और यह दौड़ परिवार के बिखराव को जन्म देती है। कहानी का पात्र शिखर इसी हाॅर्स रेस के कड़वे अनुभवों को अपने स्टाफ़ से साझा करते हुए उन्हें ऐसी हाॅर्स रेस से सावधान करता है। कहानी ‘अनारकली’ एक अकेली विधवा दीपा के दर्द और उसके संघर्ष की दास्तां है जिसकी ख़ुशियों पर ग्रहण उसके अपनों द्वारा ही लगाया जाता है। विधवा की मजबूरियों और उसकी छोटी-छोटी ख़ुशियों का गला घोंटते उसके अपने कहानी को मार्मिक बना देते हैं। एक बानगी देखिए- “दीपा की भाभी आज किसी तरह उसके दिल को अपने व्यंग्य-बाणों से बेध देना चाहती थी। यह सुनते ही हाथ नचाकर बोल उठी, “और लो! कहती है जैसे पहनती थी, पहनती हूँ! अरे...ये बात तुम्हारी समझ में नहीं आती है क्या कि अब नहीं पहनना है तुम्हें वैसे...नहीं सजना है तुमको पहले की तरह...। समझती ही नहीं है यह तो! अगर पहनना ही चाहती हो तो पहनो ननद रानी। पर जरा पता लगाना कि क्या कहते हैं सब तुम्हारे बारे में...।” यह कहकर सुनीता मुस्कुराने लगी।” 

संग्रह की अंतिम कहानी है ‘नंदन पार्क’, ग़रीब और अमीर के पारंपरिक भेदभाव की दास्तां। ग़रीब को कोई अमीर पसंद नहीं करता जबकि उनका सारा काम ग़रीब ही करता है। उनका स्वार्थ अपने कार्य तक ही सिमट जाता है। जिस घर को ग़रीब मिस्त्री, पेंटर या अन्य कोई दिहाड़ीदार तैयार करता है तो घर के पूरा होते ही उस ग़रीब मिस्त्री का प्रवेश ही वर्जित हो जाता है। ग़रीब आदमी को केन्द्र में रखकर रची गई यह कहानी हमारे समाज की हक़ीक़त को बयानती है। अमीरों को अपने घर के सामने ग़रीब बच्चों का खेलना उन्हें अपनी हैसियत, अपनी शानो-शौक़त के ख़िलाफ़ लगता है। ग़रीब बच्चों को अपने मकानों के सामने खेलने से रोकने के लिए नेता से मिलकर पर्यावरण शुद्ध करने के बहाने पार्क की योजना बनातेे हैं । पार्क बन जााता है और इस षड्यंत्र से ग़रीब बच्चों के खेलने की जगह छीन ली जाती है। कहानी हमारे समाज के उच्च वर्ग और कुटिल राजनीतिज्ञों की साँठ-गाँठ एवं निम्न सोच को सामने रखती है। 

यह संग्रह पारिवारिक मानसिकताओं, पर्यावरण की चिंता और समाजिक विडंबनाओं का ताना-बाना है जो व्यक्ति को अपने भीतर की नकारात्मकता पर झाँकने पर मजबूर कर देता है। समाज के विभिन्न पक्षों को छूता यह संग्रह अपनी कथा शैली, संवाद और चरित्र-चित्रण के बेहतर चुनाव के कारण पाठकों को अपने क़रीब ले आता है। अंजना वर्मा जी को इस बेहतरीन कहानी संग्रह हेतु साधुवाद!

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