"अन्नू, आज फिर सब्ज़ी में नमक और मिर्ची ज़्यादा थी," अमित ने ऑफ़िस से आकर अपनी पत्नी से कहा।

"अमित, तुम्हें तो मेरा बनाया खाना अब अच्छा ही नहीं लगता। बाहर का खाना मुँह लग गया है तुम्हारे। शादी के एक साल बाद अब तुम्हें सब्ज़ी में खोट नज़र आता है। मैं भी तो खाती हूँ मुझे तो सब ठीक लगता है," अन्नू ने भी तुनक कर कहा।

"ये बात नहीं है अन्नू, सब्ज़ी तो पहले भी कभी नमक ज़्यादा वाली या कभी ज़्यादा मसाले वाली बनती थी; लेकिन में खा लेता था तुम्हें कुछ नहीं कहता था। लेकिन जॉब लगने के बाद ऑफ़िस में सब साथी खाना साथ खाते हैं, तो वो लोग मेरी सब्ज़ी की शिकायत करते हैं। मैं सब्ज़ी लेकर आया हूँ वापिस... चाहे चख लो। मैं तो इतना ही कहना चाहता हूँ कि थोड़ा ध्यान से पकाया करो।"

लेकिन अन्नू ने कुछ नहीं सुना। वह अमित की रोज़ के खाने की शिकायत से परेशान हो अपने मायके चली आई।

माँ के पूछने पर वह बोली कि याद आ रही थी आपकी तो मिलने आ गई।

शाम को माँ की तबियत ख़राब हो गई तो खाना अन्नू ने बनाया। उसके पापा और भाई शाम को घर लौटे। अन्नू को देख वो ख़ुश हुए। बातचीत करने के बाद वो खाना खाने बैठ गए। अन्नू के पापा ने पहला निवाला ही खाया तो उसे वापिस निकालकर बोले, "अरे अन्नू की माँ आज तुमने ये कैसी सब्ज़ी बनाई है; नमक मसाले सब ज़्यादा हैं, ये क्या कर दिया तुमने?" 

"मेरी तबियत ख़राब थी तो आज का खाना अन्नू ने बनाया है," पास बैठी माँ बोली।

"बेटी अन्नू, खाना ध्यान से बनाओ," इतना कह उसके पापा ने सब्ज़ी हटाई और पास रखे अचार से खाना खाने लगे।

अन्नू के कान में अमित की और उसके पापा की आवाज गूँज रही थी। उसे पापा की बात पर ग़ुस्सा नहीं आया था लेकिन यदि यही बात अमित कहता तो उसे ग़ुस्सा आ जाता। पापा में शायद अपनापन लगा।

ऐसा क्यों, वह इसी सोच में खड़ी थी। शायद अमित को वह अपना नहीं मानती थी और उसके पापा उसके अपने थे। शायद...!

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