जीवन की इस बेला में 
जब चारों ओर दिखावा है
यह रिश्ता है सच्चा पक्का 
या फिर सिर्फ़ छलावा है
कहाँ गयीं वो कमसिन रातें 
अब वो मीठी बात कहाँ
राह देखते नयनों में 
उत्कंठा के जज़्बात कहाँ
अपने दिल का हाल सुनाऊँ 
हैं ऐसे हालात कहाँ
रेगिस्तानी काया में अब 
प्रेम भरी बरसात कहाँ
अरमानों की हत्याओं पर 
अब केवल पछतावा है
यह रिश्ता है सच्चा पक्का 
या फिर सिर्फ छलावा है

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