रक़्स
अमिषा अनेजाजब काले धुँआरे बादल आकाश में
खेलते हैं पकड़म-पकड़ाई
तो रक़्स होता है।
जब उन्हीं बादलों से गिरती हैं
छम छम करती नन्ही बूँदें
तो रक़्स होता है।
जब उन्हीं बूँदों की ताल पर
थिरक जाता है मतवाला मोर
तो रक़्स होता है।
सावन में लिवाने आए भाई के साथ
उत्साही क़दमों से भागी जाती है गोरी
तो रक़्स होता है।
जब चिड़िया चोंच में दाना भर
खिलाती है अपने चूज़ों को
तो रक़्स होता है।
जब बंद कली ख़ूब कसमसा कर
भक्क से खोल देती है ख़ुद को
तो रक़्स होता है।
जब घुटनों चलता बच्चा गिर उठ कर
लड़खड़ा कर चलते लगता है दो पाँव
तो रक़्स होता है।
जब ओखल में धान कूटती कोई
उस थाप के साथ ताल मिलाती है
तो रक़्स होता है।
जब पलकों पर अटकी बूँदें
हौले से ढुलक जाती हैं कपोलों पर
तो रक़्स होता है।
उफनती उमड़ती आती है सागर लहरें
रेतीले तट को चूम कर लौट जाती हैं
तो रक़्स होता है।
प्रिय के आने के इंतज़ार में जब
दरवाज़े के चक्कर लगाती है कोई
तो रक़्स होता है।
यानी धरा की हर धड़कन में रक़्स होता है
क़ुदरत की हर जुंबिश में रक़्स होता है
इंसान की हर उस क्रिया में रक़्स होता है
जहाँ उसकी संवेदना का अक्स होता है
बस तब नहीं होता है वो रक़्स ....
जब कोई नाचता है किसी के इशारे पर
जब कोई किसी को करता है मजबूर
जब सिर्फ़ हाथ पैर नाचते हैं मन नहीं
संतोष कम और धन मिलता है भरपूर
जब वाहवाही की भूख बड़ी हो जाती है
और घट जाती है कला की प्यास
जब सब कुछ सुगढ़ सुडौल होता है
बस होता नहीं है वो कभी अनायास।
हाथों पैरों की भंगिमाएँ होती हैं बेबस
सूख जाते हैं सब जीवनदायी रस
एक आडम्बर की रह जाती है हवस
बस तब नहीं होता है वो रक़्स. . .
1 टिप्पणियाँ
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वाह ! कितने सुंदर बिम्ब हैं ! जब चिड़िया चोंच में दाना भर खिलाती है अपने चूज़ों को तो रक़्स होता है। - जब बंद कली ख़ूब कसमसा कर भक्क से खोल देती है ख़ुद को तो रक़्स होता है। - इंसान की हर उस क्रिया में रक़्स होता है जहाँ उसकी संवेदना का अक्स होता है -- बहुत सुंदर चित्र उकेरे हैं 'रक़्स के' और 'रक़्स के न होने के' भी बधाई