राजनीति (मुक्तक - समीर लाल ’समीर’)

31-05-2008

राजनीति (मुक्तक - समीर लाल ’समीर’)

समीर लाल 'समीर'

देश की वर्तमान राजनीति के हालातों पर नजर डालती एक रचना:

//१//
जीवन की अंतिम संध्या पर, कहते हैं अब काम करूँगा
लूट मचाते थे जो कल तक, कहते हैं अब दान करूँगा
वोट जुटाने की लालच में, ये क्या क्या कुछ कर सकते हैं
दलितों के मन को बहलाने, कहते है उत्थान करूँगा

//२//
कभी उसका कभी इसका, ये दामन थाम लेते हैं
हवा किस ओर बहती है, उसे यह जान लेते है
जिसे कल तक हिकारत की नज़र से देखते आये
सभी कुछ भूल कर अपना, ये उसको मान लेते हैं.

//३//
सियासत एक मंडी है, यहाँ इमान बिकता है
वही इंसान को ढूँढ़ो, अगर हैवान दिखता है
यहाँ वो ही सिंकन्दर है न जिसमें लाज हो बाक़ी
नहीं डरता गुनाहों से, भले नज़रों से गिरता है.

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