प्रणय-पर्व

01-10-2019

प्रणय-पर्व

अजेय रतन

चलो पुरानी राहें छोड़ें 
चलो कुछ नए क़दम उठाएँ
तिथियों से अब आज़ाद करें 
आजीवन त्यौहार मनाएँ

 

१)
चलो प्रेम की गमक बिखेरें
नित लगाएँ प्रेम का उबटन
प्रेम का अबद्ध श्वास लेवें
जग बनाएँ प्रेम का उपवन

 

प्रेम की सब महत्ता समझें
त्यौहार का कुछ क़द बढ़ाएँ
तिथियों से अब आज़ाद करें 
आजीवन त्यौहार मनाएँ

 

२)
प्रकृति को भी प्रेयसी समझें
जीवों से भी हम करें प्यार
शब्द का मोहताज नहीं हैं 
प्रेम में भीगा सा व्यवहार 

 

बिना कोई विषमताओं के
मुहब्बतों  के कोष लुटाएँ
तिथियों से अब आज़ाद करें 
आजीवन त्यौहार मनाएँ

३)
इन कर्णभेदी धमाकों को 
प्रेम की बँसुरी हराती है
बिखरते हुए कुछ रिश्तों में
उल्फ़त वेष्टक बन जाती है

 

वेष्टक= गोंद

 

नफ़रत के सब हथियारों को
अनुराग के पुष्पक बनाएँ
तिथियों से अब आज़ाद करें 
आजीवन त्यौहार मनाएँ

 

४)
जब सोचेगी कल की पीढ़ी 
यह कैसा हमने आज दिया
मनस्ताप कोसेगा हम को
दिलों पर घृणा ने राज किया

 

मनस्ताप= पछतावा

 

कल वाली नस्लों की ख़ातिर 
आज से प्रेम पौध उगाएँ
तिथियों से अब आज़ाद करें 
आजीवन त्यौहार मनाएँ

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