प्रकृति की गोद में

18-10-2017

प्रकृति की गोद में

प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'

01.
पौधा लगाएँ
प्रकृति से मित्रता
आओ निभाएँ।

02.
बहती नदी
जीवन का प्रमाण
है पहचान।

03.
नदी की कथा
रेत रेत हो गई
पिहानी व्यथा।

04.
नदी का जल
बहता कलकल
गीत कोमल।

05.
निर्मल जल
जीवन का प्रतीक
यही है कल।

06.
रवि कृषक
बोये मेघ के बीज
वर्षा फसल।

07.
बीज बो दिए
अंकुरित हुए तो
बनेंगे वट।

08.
गहरा ताल
कीचड़ से निकला
कमल नाल।

09.
नदी बहती
छलछल करती
गीत सुनाती।

10.
गिरि को चीर
निकलता निर्झर
बहता नीर।

11.
हवा बहकी
सुमनों को छू कर
महका चली।

12.
डाली से टूटा
रुठे को मनाएगा
गुलाब हँसा।

13.
हवा चलती
चिरागों की जिंदगी
बुझ सी चली।

14.
शोक मनाते
पतझड़ में पत्ते
शाख छोड़ते।

15.
आँधियाँ चलीं
नीड़ के निर्माण में
पाखी न हारी।

16.
नन्हीं सी पाखी
नीड़ के सृजन में
तृण चुनती।

17.
डालियाँ टूटीं
नीड़ उजड़ गया
चिड़िया रूठी।

18.
डाली में बैठी
उदास दिखी पाखी
नीड़ की लुटी।

19.
बहता जल
करता कलकल
गीत कोमल।

20.
खिले सुमन
बाँचती चली हवा
मृदु सुगंध।

21.
खिले सुमन
छंदों के बंध बंधे
गीत प्रीतम।

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