फूल महके यूँ फ़ज़ा में रुत सुहानी मिल गई
देवमणि पांडेयफूल महके यूँ फ़ज़ा में रुत सुहानी मिल गई
दिल में ठहरे एक दरिया को रवानी मिल गई
घर से निकला है पहनकर जिस्म ख़ुशबू का लिबास
लग रहा है गोया इसको रातरानी मिल गई
कुछ परिंदों ने बनाए आशियाने शाख़ पर
गाँव के बूढ़े शजर को फिर जवानी मिल गई
आ गए बादल ज़मीं पर सुनके मिट्टी की सदा
सूखती फ़सलों को पल में ज़िंदगानी मिल गई
जी ये चाहे उम्र भर मैं उसको पढ़ता ही रहूँ
याद की खिड़की पे बैठी इक कहानी मिल गई
माँ की इक उंगली पकड़कर हँस रहा बचपन मेरा
एक अलबम में वही फोटो पुरानी मिल गई