पथिक तम से न घबराओ
जयशंकर पाण्डेयकहो तुम सत्य हरपल ही, नहीं तुम भय तनिक लाओ
सदय दिल हो सदा ही और, मधुरिम गीत तुम गाओ
निरंतर लक्ष्य को भेदो, बढ़ो आगे निरंतर ही
महज़ कुछ ठोकरों से टूटकर, मंज़िल न बिसराओ
बनो तुम दीप ख़ुद के हे, पथिक तम से न घबराओ
जहाँ के व्यंग्य के ख़ातिर, न मन में खेद तुम लाओ
हज़ारों कोशिशें होवें विफल, फिर भी रहो तत्पर
सभी दुःख संशयों को छोड़कर, जयगान तुम गाओ
सदा सोचो सहज, सुंदर, विचारों के लिए तुम हो
सुनिश्चित लक्ष्य जो कुछ है, किनारों के लिए तुम हो
नहीं बाधा कभी झकझोर पाये, तुम अडिग रहना
दिवाकर हो धरा के तुम, उजालों के लिए तुम हो
पगों से कौन तय करता, यहाँ पर दु:ख भरे पथ को
सदा आराध्य तुम मानो, जहाँ में कर्म के रथ को
अगर मन में बने संशय, स्वयं इतिहास पढ़ लेना
विजय होता उसी का जो, चुने संघर्ष के पथ को