पहाड़ 

अशोक कुमार  (अंक: 170, दिसंबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

ढलानों ने हमें!
संतुलन सिखाना चाहा
किन्तु हमने!
चढ़ाइयों से संघर्ष सीखा।
 
पहाड़ों ने चाही!
हमें स्थिरता सिखानी,
किन्तु हमने!
नदियों से चंचलता सीखी।
 
घने जंगलों ने!
हमारे रास्ते रोकने चाहे
और हमने!
जंगलों में घर बना लिए।
 
हम लड़े हैं!
मौसमों के विरुद्ध
बारिश ने हमारे घर भिगोए
और हम!
बर्फ़ ओढ़कर सो गए।
 
हमने बचाये रखे!
देवदार के जंगल,
चश्मों में पानी,
झरनों का संगीत,
जानवरों के घर,
और पंछियों के घोंसले भी।
 
यह पहाड़!
हमारा पहला प्रेम हैं
पहला सबक़,
पहला संघर्ष
और पूरी दुनियाँ भी।
 

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