नूतन आशियाँ
अर्चना सिंह 'जया'बारिश से बचने की कोशिश में
गौरैया छज्जे पर आती थी।
धूप में रखे सरसों व चावल
चिड़िया चुगकर उड़ जाती थी।
अमिया पर बैठ आँगन में
काली कोयल गाया करती थी।
बाहर बगीचे में मधुकर भी
गुनगुन शोर मचाता था।
पर कहाँ गई वृक्षों की टहनियाँ?
काँव-काँव का स्वर अब कहाँ?
ईंट की दीवारें हैं अब दिखती
ईमारतें ही ईमारतें हैं यहाँ वहाँ।
भयभीत है वृंद सारे, उड़ चले
खोजने अपना नूतन आशियाँ।