इस इस मुश्किल वक़्त में वो
मुनाफ़ा कमाए जा रहा है।
गुज़र गये लोग, गुज़ारा न होने से,
और वो है कि दाम बढा़ए जा रहा है।
दुश्मन इस मुल्क और दुनिया का
जो बेरहम हो गया है,
ग़रीबों पर रहम के बजाए
उनके चिथडे़ उडा़ए जा रहा है।
हैवानियत की हद है इस दौर में
वो मुब्तिला बराबर है,
वो भ्रम में है कि बहुत कुछ
कमाए जा रहा है।
मुब्तला=पड़ना, फँसना
एक झटके में पलटती है दुनिया,
सब देखते रह जाते हैं,
पर नहीं, वह अपनी आदतों से
मात खाए जा रहा है।
ख़ुदा इस वक़्त अक्ल दे
अँधेरे में वो गुमराह हो चुका है,
जो इंसानियत के वक़्त में
अदावत दिखाए जा रहा है।
अदावत=शत्रुता, वैर, दुश्मनी
लोग मुँह छुपाए घूम रहे हैं
फैला है क़हर चारों तरफ़,
और वो बेशरम मुँह खोले
माल कमाए जा रहा है।
देखो क़यामत बरपी है
इस ख़ूबसूरत कायनात में,
न डर रसूल का उसे,
अपना ईमान गँवाए जा रहा है।
मौला देख रहा है कि
किसके नसीब में हैं नेकियाँ,
और इंसान है कि ख़ुद
अपने जाल में फँसाए जा रहा है।