मुग़ालते

14-04-2014

मुग़ालते

सरस दरबारी

अच्छा लगता है मुग़ालतों में जीना
उन एहसासों के लिए
जो आज भी धरोहर बन
महफूज़ हैं कहीं भीतर –
उन लम्हों के लिए
जो छूट गए थे गिरफ़्त से . . .
जिए जाने से महरूम . . .
लेकिन आज भी
उतनी ही ख़ुशी देते हैं !
उन यादों के लिए
जो आज भी जीता रखे हैं
उन अंशों को
जो चेहरे पर उभर आयी मुस्कराहट
का सबब बन जाते हैं . . .
हाँ . . .मुग़ालते अच्छे होते हैं . . .!!!!!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें